जोधपुर: डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय, जोधपुर में चल रहे सतत क्षमता विकास कार्यक्रम 2025 के अंतर्गत गुरुवार को एक महत्वपूर्ण सत्र का आयोजन किया गया। इस सत्र का विषय था "प्राकृतिक औषधियों में अनुसंधान की संभावनाएं और जैव संरक्षण", जिसमें वैज्ञानिकों, प्रोफेसरों और विद्यार्थियों ने सक्रिय भागीदारी की।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता वैज्ञानिक डॉ. अरुण कुमार त्रिपाठी ने कहा कि भारत के पारंपरिक ज्ञान में छिपी औषधीय जड़ी-बूटियों की शक्ति से कई असाध्य रोगों का प्राकृतिक इलाज संभव है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि अश्वगंधा, गिलोय, तुलसी, हरड़-बहेड़ा जैसी आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां डायबिटीज, कैंसर, और तनाव संबंधी विकारों के उपचार में कारगर पाई गई हैं।
कार्यक्रम में जैव विविधता के संरक्षण की आवश्यकता पर भी बल दिया गया। जैविक संसाधनों की अनियंत्रित कटाई और रासायनिक कृषि के प्रभाव को रेखांकित करते हुए डॉ. त्रिपाठी ने कहा कि यदि आज हमने अपनी प्राकृतिक विरासत की रक्षा नहीं की, तो आने वाली पीढ़ियां आयुर्वेद की समृद्ध परंपरा से वंचित रह जाएंगी।
सत्र के दौरान बड़ी संख्या में उपस्थित छात्र-छात्राओं ने औषधीय पौधों की पहचान, उनके वैज्ञानिक प्रयोग, और औषधि निर्माण की विधियों पर जानकारी ली। यूनिवर्सिटी के आयुर्वेदिक फार्मेसी विभाग के छात्र राजेश चौधरी ने बताया कि इस कार्यक्रम ने उन्हें "व्यावहारिक अनुसंधान की दिशा में प्रेरित किया है।"
कार्यक्रम का संचालन कर रहे प्रो. (डॉ.) अनुराग मिश्रा, जो यूनिवर्सिटी में औषधीय वनस्पति विभाग के प्रमुख हैं, ने कहा,
“इस तरह के व्याख्यानों से विद्यार्थियों को न केवल ज्ञान मिलता है, बल्कि वे शोध और इनोवेशन की दिशा में भी गंभीरता से सोचते हैं।”
उन्होंने बताया कि आने वाले समय में विश्वविद्यालय औषधीय पौधों की एक डिजिटल लाइब्रेरी और हर्बल गार्डन की विस्तृत नवीनीकरण योजना पर कार्य कर रहा है।
इस कार्यक्रम के माध्यम से आयुर्वेद विश्वविद्यालय ने एक बार फिर यह सिद्ध किया कि भारत का पारंपरिक चिकित्सा विज्ञान न केवल प्राचीन है, बल्कि आज के समय में भी प्रासंगिक और वैज्ञानिक रूप से सक्षम है। जैव संरक्षण, शोध और नवाचार के माध्यम से आयुर्वेद को वैश्विक मंच पर मजबूत किया जा सकता है।
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